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Author: Rajendra Prasad
“ मानवता के दिन कब बहà¥à¤°à¥‡à¤‚गे “ नामक यह कविता-संगà¥à¤°à¤¹ मेरी कावà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• यातà¥à¤°à¤¾ का चतà¥à¤°à¥à¤¥ योगदान है। इसके पूरà¥à¤µ पà¥à¤°à¤•ाशित मेरे तीन कविता-संगà¥à¤°à¤¹ और उनके बारे में सà¥à¤§à¥€à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ ,विशेषकर समीकà¥à¤·à¤•ों की समीकà¥à¤·à¤¾à¤à¤‚, मेरी रचनाधरà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ को निरंतर पà¥à¤·à¥à¤Ÿ करती रही हैं। ये विचार-पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ रचनातà¥à¤®à¤• कवितायें देश-काल और बदलती परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤°à¥‚प मेरे मनोà¤à¤¾à¤µ, कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¶à¥€à¤² चिंतन और सामाजिक-सांसà¥à¤•ृतिक संवेदनाओं की खà¥à¤²à¥€ अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ हैं। इस नठकावà¥à¤¯ संगà¥à¤°à¤¹ की सारी कविताà¤à¤‚ बदलते परिवेश में मानवता का तेवर नापने का बैरोमीटर हैं; साथ ही इनमें वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿, समाज और वैशà¥à¤µà¤¿à¤• सà¥à¤¤à¤° पर पीड़ित मानवता के वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ और à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ की चिंता है। ये कविताà¤à¤‚ यथारà¥à¤¥ से पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· टकà¥à¤•र लेती हà¥à¤ˆà¤‚ मानव को केंदà¥à¤° में पाकर उसकी परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ कर रही हैं। इन कविताओं में वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿, समाज, राषà¥à¤Ÿà¥à¤°, विशà¥à¤µ और पà¥à¤°à¤•ृति में होने वाले परिवरà¥à¤¤à¤¨ और उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के विरूदà¥à¤§ आतà¥à¤®à¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿ को जगाने की अनथक चिंता है। इन कविताओं के कलेवर में आतà¥à¤®-चेतना और बोध का इतना पà¥à¤°à¤¬à¤² à¤à¤¾à¤µ है कि कवि का कावà¥à¤¯à¤¶à¥€à¤² मन संघरà¥à¤· से न थकता है, न ऊबता है, अपितॠविषम से विषम परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में उचà¥à¤š मनोबल के साथ लकà¥à¤·à¥à¤¯ पाने की दिशा में बढ़कर कठिनाइयों का पहाड़ पार कर लेता है। सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿà¤¤: मेरे कावà¥à¤¯ रचना-संसà¥à¤•ार में दरà¥à¤¶à¤¨, इतिहास, विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¥Œà¤¦à¥à¤¯à¥‹à¤—िकी, कला व अधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤® का आशावादी , उपयोगितातà¥à¤®à¤• , लोकहितकारी और बहà¥à¤†à¤¯à¤¾à¤®à¥€ संगम है। साथ ही इन कविताओं के कावà¥à¤¯ शिलà¥à¤ª में नव सौंदरà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤•, मूलà¥à¤¯à¤—त, जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤•, असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µà¤µà¤¾à¤¦à¥€ तथा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¥€ मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की अनà¥à¤—ूà¤à¤œ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤§à¥à¤µà¤¨à¤¿à¤¤ होती है, जो चंद लमà¥à¤¹à¥‹à¤‚ में ही विराट आतà¥à¤®à¤¾ तक का सफर पूरा कर लेती है।इनमें 21वीं शताबà¥à¤¦à¥€ में उतà¥à¤¤à¤°-आधà¥à¤¨à¤¿à¤•ता काल से नवयà¥à¤—ीन रचनाधरà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ तक के वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• परिपà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤·à¥à¤¯ में मानव ही नहीं , अपितॠअनà¥à¤¯ जीवों की जिंदगी का जिंदगी से साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार का संजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• शंखनाद à¤à¥€ है। इस कविता-संगà¥à¤°à¤¹ में उतार-चढ़ाव से à¤à¤°à¥‡ मनà¥à¤·à¥à¤¯ की जिंदगी की विचार-सरिता में उठने वाली लहरों का कल-कल निनाद व निरà¥à¤®à¤² पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ है। इन कविताओं में उदातà¥à¤¤ अंत:पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ है , जो हमें वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿, समाज, राषà¥à¤Ÿà¥à¤°, और विशà¥à¤µ के परिपà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤·à¥à¤¯ में à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, सांसारिक हितों व आदरà¥à¤¶à¥‹à¤‚, संकलà¥à¤ªà¥‹à¤‚ और विकलà¥à¤ªà¥‹à¤‚ का गà¥à¤£à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¾à¤¦ करके नीर-कà¥à¤·à¥€à¤° विवेक हासिल करने के लिठà¤à¤¾à¤µ-पà¥à¤°à¤µà¤£ रचनाधरà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ से जोड़ती है। इस संगà¥à¤°à¤¹ की कविताà¤à¤‚ समृदà¥à¤§ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•ृति व परमà¥à¤ªà¤°à¤¾, देश-काल परिवरà¥à¤¤à¤¨ और सूचना- कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति के बावजूद सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ बौदà¥à¤§à¤¿à¤•ता की कावà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• सरसता का समेकित कोष हैं। इन कविताओं में निराशा नहीं, बलà¥à¤•ि आशा और उपयोगिता के बीज सनà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¤¿à¤¤ हैं।इनमें निहित विचार-कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं में मानव जीवन और जिजीविषा की संजीवनी शकà¥à¤¤à¤¿ है, जो मà¥à¤à¥‡ मानवता के पकà¥à¤· में कà¥à¤› बोलने और करने के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ करती है। इनमें उचà¥à¤š शिकà¥à¤·à¤¾ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के मेरे अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚ और कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¶à¥€à¤²à¤¤à¤¾ की à¤à¤¾à¤µà¤à¥‚मि से उपजे वे जà¥à¤žà¤¾à¤¨-ततà¥à¤µ समाहित हैं, जिनके लिठमैंने लमà¥à¤¬à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ तय की है। ततà¥à¤•à¥à¤°à¤® में, मैंने महायोगी गà¥à¤°à¥ गोरकà¥à¤·à¤¨à¤¾à¤¥à¤œà¥€ की पावन नगरी गोरखपà¥à¤° से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ कर विशà¥à¤µ-धरोहर ‘ताजमहल’ की नगरी आगरा , फिर संगम-नगरी ‘पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤—राज’ होते हà¥à¤ महातà¥à¤®à¤¾ बà¥à¤¦à¥à¤§ के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और बोधि की à¤à¥‚मि ‘बोधगया’ तक की अपनी पंचदशकीय महायातà¥à¤°à¤¾ पूरà¥à¤£ की है। आजकल मैं“ जैसे उड़ि जहाज को पंछी पà¥à¤¨à¤¿ जहाज पर आवै “ की सà¥à¤–द सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में गोरखपà¥à¤° में कृतकारà¥à¤¯ अवसà¥à¤¥à¤¾ में विशà¥à¤°à¤¾à¤® कर रहा हूà¤, पर लेखन और सामाजिक सरोकार में सहà¤à¤¾à¤—िता अनवरत जारी है। इस कविता-संगà¥à¤°à¤¹ की कविताà¤à¤‚, मेरी सततॠपà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾-सà¥à¤°à¥‹à¤¤ पूजनीया माताशà¥à¤°à¥€ शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ देवी और मातृà¤à¥‚मि à¤à¤¾à¤°à¤¤ को “जननीजनà¥à¤®à¤à¥‚मिशà¥à¤š सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ादपि गरीयसी†की उदातà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ हैं। मेरी कविताई की सà¥à¤‚दर साजसजà¥à¤œà¤¾ और पà¥à¤°à¤•ाशन की पूरी टीम बधाई की हकदार हैं, जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पूरी लगन और तनà¥à¤®à¤¯à¤¤à¤¾ से इस कावà¥à¤¯- संगà¥à¤°à¤¹ को समय से पà¥à¤°à¤•ाशित करके इसको पाठकों तक सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤²à¤ बनाया है। आशा ही नहीं , पूरà¥à¤£ विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ है कि इस कावà¥à¤¯-संगà¥à¤°à¤¹ की कविताà¤à¤‚ सà¥à¤§à¥€ पाठकों, सà¥à¤¨à¥‡à¤¹à¥€ कविजनों और समीकà¥à¤·à¤•ों को जोड़ने व रससिकà¥à¤¤ करने में सफल होंगी ।
| SKU | Book230766C |
| ISBN | 9789364266185 |
| Dimensions | 5*8 |
| Total Page | 114 |
| Paper Color | Cream Paper |
| Cover Laminations | Glossy |
| Language | |
| Publish Date | 29 May, 2025 |
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